वह प्यारी सलीब
मुझ को दीख पड़ती है
एक पहाड़ी पर जो खड़ी थी
कि मसीह-ए- मसलूब
ने नदामत उठा
गुनहगारो कि खातिर जान दी
पस न छोड़ूंगा प्यारी सलीब
जब तक दुनिया में होगा कयाम
लिपटा रहूँगा मैं उसी से,
कि मसलूब से है अब्दी आराम
आह ! वह प्यारी सलीब,
जिसकी होती तहक़ीर
है मुझ को बेहद दिल पिज़ीर
कि ख़ुदा के महबूब
उस जलाली मसीह
ने सहा दुःख बे नजीर
मुझे प्यारी सलीब में,
गो लहु-लुहान
नज़र आती है खूबसूरती
कि ख़ुदा के मसीह
ने कफ़्फ़ारा दिया
ता मिले मुझे ज़िन्दगी
मैं उस प्यारी सलीब
का रहू वफ़ादार
सिपाही हमेशा ज़रूर
जब तक मेरा मसीह
न करेगा मुझे
अपने अब्दी जलाल में मंज़ूर