आसमान बयान करते
ख़ुदा का जलाल
और फ़ज़ा बताती
है उसका कमाल
हां सुबह और शाम भी
और दिन भी और रात
दिखलाते अलक़ादिर
ख़ुदा की सिफ़ात
न उनकी ज़ुबान है
न उनकी आवाज़
पर तौभी बजाते
सिताइश का साज़
कि ख़िलक़त से ख़ालिक का
होता बयान
वह क़ादिर-इ-मुतलक
हक़ीम आलीशान
ज़मीन और आसमान पर
है रब्ब का क़लाम
कि सूरज और चाँद
और सितारे तमाम
पहाड़ ओ समुन्दर
मैदान ओ दरया
सब कहते हैं ख़ालिक़
है क़ादिर ख़ुदा
देख दुल्हे की मानिन्द
है सूरज तैयार
निकलता है पूरब से
हो रौनकदार
और पच्छिम को करता है
ग़रदिश तमाम
और छिपा है उस से
न कोई मकाम
आसमान बयान करते
ख़ुदा का जलाल
और फ़ज़ा बताती
है उसका कमाल
हां सुबह और शाम भी
और दिन भी और रात
दिखलाते अलक़ादिर
ख़ुदा की सिफ़ात
ख़ुदा का जलाल
और फ़ज़ा बताती
है उसका कमाल
हां सुबह और शाम भी
और दिन भी और रात
दिखलाते अलक़ादिर
ख़ुदा की सिफ़ात
न उनकी ज़ुबान है
न उनकी आवाज़
पर तौभी बजाते
सिताइश का साज़
कि ख़िलक़त से ख़ालिक का
होता बयान
वह क़ादिर-इ-मुतलक
हक़ीम आलीशान
ज़मीन और आसमान पर
है रब्ब का क़लाम
कि सूरज और चाँद
और सितारे तमाम
पहाड़ ओ समुन्दर
मैदान ओ दरया
सब कहते हैं ख़ालिक़
है क़ादिर ख़ुदा
देख दुल्हे की मानिन्द
है सूरज तैयार
निकलता है पूरब से
हो रौनकदार
और पच्छिम को करता है
ग़रदिश तमाम
और छिपा है उस से
न कोई मकाम
आसमान बयान करते
ख़ुदा का जलाल
और फ़ज़ा बताती
है उसका कमाल
हां सुबह और शाम भी
और दिन भी और रात
दिखलाते अलक़ादिर
ख़ुदा की सिफ़ात