जिनका भरोसा यीशु पर, वो कभी न गिरेगा ; (2)
दृढ पर्वत के समान खड़ा हो कर दुनिया में नूर करेगा
1.दुनियाँ की किचड़ में फँसा था मैं,
पवित्र हाथ बढ़ा कर, बाहर निकाला मुझे ; (2)
मुझ मिट्ठी के पुतले को, तोड़ कर नया बनाया ; (2)
जीवन को मेरे, बदल दिया, अचम्भा कार्य किया
2. चाहे हो बिमारी , चाहे हो मुसीबतें,
गमों के घनघोर बादल घेरे है मुझे ; (2)
रखँूगा उस पर अपना भरोसा तो
खुशियों के साथ सवेरा हो,(2)
तुम भी लाओ गर उस पर ईमान, पाओगे शान्ति आराम